कर्मयोगी आबा...

30 Apr 2021 16:56:35

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श्रीगणेशाला वंदन। कुलस्वामी मातेला नमन।
श्रीगुरूचरणी प्रणिपातून। कथिते विचार ॥१॥
 
 
जीवाला वाटे तो कर्ता। परी तो निमित्तमात्र असता।
तैसेचि साक्षात् अनुभविता। सहज आले॥२॥
 
 
गणेशाची कृपा झाली। प्रेम साद त्याने घातली।
निमित्त ‘अध्यक्षाला’ घाली। तेची आबासाहेब॥३॥
 
 
जरी परिचय नव्हता। अधिकारे मज आज्ञा देता।
वय अधिकार जाणता। मंदिरी धावले ॥४॥
 
 
नवनर्ष स्वागतयात्रा। त्रयोदशाक्षरी मंत्र होता।
‘जपयज्ञ’ भाविक जनांकरिता। करणे कार्य ॥५॥
 
 
मागाविल्या दोनशे स्मरणी। भक्ता जप करावा मनी।
रात्री तो सूर्योदयापासूनी। शुभपर्वकाळी॥६॥
 
 
सारे होते हे नवीन। एकलकोंडी मी समाजापासून।
काम माथी ठेऊन। कार्यारूढ केले॥७॥
 
 
वैखरीचे बळ देऊन। अंतरी धैर्य जागवून।
आत्मविश्वास चेतवून। कार्यात ढकलले॥८॥
 
 
आबांचे वय पाहता। नाही म्हणवेना या ताता।
प्रयत्नांचा केला शिकस्ता। एकवटून बळ॥९॥
 
 
 
नित्य त्यांचा एकच ध्यास। समाजसेवा करण्यास।
स्वागतयात्रा विस्तारास। करिती संपर्क॥१० ॥
 
 
कधी जावे खेड्याखेड्यांत। कधी गावे जिल्ह्यांत।
राज्ये-देश-विदेशात। बांधिले जना॥११॥
 
 
किती सभा आयोजिती। योग्य कार्यकर्ता हुडकती।
कार्य वाटप करिती। समर्थपणे॥१२॥
 
 
कार्य होतोटी विलक्षण। अतिथी आमंत्रिती महान।
परि स्वये होऊनी लहान। भेटविती सर्वा॥१३॥
 
 
कार्य काळी सहवास। मज घडला बहु दिवस।
नवे व्यक्तित्त्व पैलुस। घडले दर्शन ॥ १४॥
 
 
आबा जरी अध्यक्ष असती। सार्‍या कर्मचार्‍यांचे मित्र होती।
वात्सल्याने चौकशी करिती। प्रेमभावे ॥१५॥
 
 
सर्वां त्यांच्याविषयी आदर। त्यांचे कार्यासी सादर।
थोर अतिथी येता अगोदर। त्यांचा परिचय देती॥१६॥
 
 
नित्य नवे उपक्रम योजून। बालके महिला संघटित करून।
आत्मविश्वास-शक्ती देऊन। स्वये राहली मागे ॥१७|| 
 
 
जन्मजात हा कर्मयोगी। वृत्ती होती वितरागी।
नाना क्षीतिजे-क्षेत्रांलागी। हाताळती समर्थपणे॥१८॥
 
 
जरी गणेशकार्य करिती। कृष्णावरी अतिप्रीति।
नित्य आचरती कृष्णभक्ती। दिनरात॥१९॥
 
 
कृष्णस्तवने रचिती। ‘मीरा‘ वरी अनन्यभक्ती।
तिला अंतरी ठेविती। भावबळे॥२०॥
 
 
राधा तयांची शक्ती। तिचे प्रति नमन करिती।
परी विशेष प्रीती। मीरे वरी॥२१॥
 
 
तयांचे अंतरी संकल्प उठला। विश्वस्तांच्या संगीत सेवेला।
हट्ट सर्वांपायी धरिला। यास्तव॥२२॥
 
 
 
दातारांची शास्त्र संगीत सेवा। सप्तर्षींची वैखरी सेवा।
स्वये पद्मरचना रुपी सेवा। गाऊन हो घेतली॥२३॥
 
 
यांना विद्याथ्यार्र्ंची चिंता। यास्तव दिनरात विचार करता।
सृजनता उपक्रम हाती घेता। सुखावले सार्‍या॥२४॥
 
 
 
सहस्र विद्यार्थी जमविले। आवर्तने अथर्वशीर्ष करविले।
ंहस्तलिखिते प्रदर्शन भरविले। मंदिरी शाळांचे॥२५॥
 
 
 
चित्रकला स्पर्धा आयोजिली। गणेशाकृती-आज्ञा केली।
जमली साडेआठशे बालमंडळी। यासाठी॥२६॥
 
 
युवाभक्ती शक्ती दिनी। युवा मंडळी जमवूनी।
व्यासपीठ त्यांचे स्वाधीन करुनी। कार्य करविले॥२७॥
 
 
युवा महाविद्यालयीन। स्वयें त्यांना आवाहून।
संस्कृतीचे कलादर्शन। घडविले जना॥२८॥
 
 
स्वये मागे राहावे। युवापिढीला प्रोत्साहन द्यावे।
गुणपारखी स्वये निवडावे। यथायोग्य॥२९॥
 
 
नाना गुणांचे भंडार। एकवटले या उपाधीवर।
अनेक संस्थांचे पदभार। घेती सहज॥३०॥
 
 
स्वत: कवी संवेदनशील। साहित्याची उत्तम जाण।
मवाळ कुटुंबवत्सल। स्वभावत:॥३१॥
 
 
राजकीय पक्ष नाना। सारे सखे मानती यांना।
भेदभाव नसे यांना। अंतरिचा ॥३२॥
 
 
लोकसंग्रह अफाट। स्मरणशक्ती अचाट।
संघटन व्यापकता विराट। असे अंतरी॥३३॥
 
 
बाल होती बालकांत। युवा होती युवकांत।
धीरगंभीर ज्ञानी जनांत। अलगदपणे॥३४॥
 
 
अनेकांचा हा ’वड’ आधार। उन्मळून पडला भूमीवर।
स्वकीय-आप्तांना केले निराधार। हुरहूर लावूनी॥‡३५॥
 
 
‘गुरवे नम:’ नाही ऐकणार। कार्य आज्ञा कोण देणार।
 
 
नाही कौतुकाची थाप पाठीवर। उरल्या आठवणी॥३६॥
 
 
शुद्ध भावाची ओंजळ। शब्द सुमनांची माळ।
चरणी समर्पूनी केवळ। विराम पावते॥३७॥
 
 
 
- अलका मुतालिक
 
 
 
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