ममता दीदी मुल्ला, मौलवी , पुरोहित यापुढे अर्थव्यवस्थेसाठी कधी विचार कराल का ?

पश्चिम बंगालच्या मुख्यमंत्री ममता बॅनर्जी यांचे आर्थिक लांगुलचालनाचे नवीन धोरण.

    06-Sep-2023
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Mamta
 
 
ममता  दीदी  मुल्ला,  मौलवी , पुरोहित  यापुढे  अर्थव्यवस्थेसाठी  कधी  विचार  कराल  का  ?
 
 

पश्चिम  बंगालच्या   मुख्यमंत्री  ममता    बॅनर्जी    यांचे   आर्थिक  लांगुलचालनाचे  नवीन  धोरण. 
 
 

मोहित सोमण
 


देशातील  छुपे  शत्रू  ओळखा  हे  म्हणण्याची  वेळ  येऊन  ठेपली  आहे.  देशातील  सरकार  हे  जनतेच्या  हितासाठी,  कल्याणकारी  योजनांसाठी ,  मुलभूत  सुविधा  व  आरोग्य,  शिक्षण,  रोजगार,  व  कायदा  सुव्यवस्थेसाठी  असते  का  लांगूलचालनासाठी  असते  असा  प्रश्न  जनतेला  पडणे  सहाजिकच  आहे.  याचे  ताजे  उदाहरण  म्हणजे  पश्चिम  बंगालच्या  मुख्यमंत्री  ममता  बॅनर्जी  यांचे  आर्थिक  लांगुलचालनाचे  नवीन  धोरण.
 
 

लोकसभा  निवडणूक  जवळ  असल्याने  आता  सर्व  राजकीय  पक्षांची  रेलचेल  सुरू  असली  तरी  ममता  बॅनर्जींनी  यात  आघाडी  घेतली  आहे  का  प्रश्न  उपस्थित  होतो  आहे.  ममता  बॅनर्जींनी  निवडणूकीचा  तोंडावर  नवीन  निर्णय  घेतला  आहे.  पश्चिम  बंगाल  मध्ये  भारतीय  जनता  पार्टीचा  वाढता  प्रभाव  हे  या  नवीन  निर्णयाचे  मूळ  आहे.  ममता  दीदींनी  बंगालमध्ये हिंदू,  मुस्लिम  दोन्ही  समाजाला  खूष  करण्यासाठी  इमाम,  व  पुरोहित  यांना  आर्थिक  सहाय्य  देण्याचे  ठरवले  आहे.  त्यातही  स्पष्ट  भेदभाव  दिसत  आहे.  इमामांना  दरमहा  ३०००  रुपये,  पुरोहितांना  १५००  रूपये  सहाय्य  मिळणार  आहे.  प्रमुख  विरोधी   पक्ष   म्हणून   भारतीय   जनता   पार्टीचा   वाढता   प्रभाव,   त्यांना   हिंदू   समाजाचा   मिळणारा   वाढता   पाठिंबा  दुसरीकडे  काँग्रेस ,  लेफ्ट  फ्रंट  कडे  वळणारी  मुस्लिम  समाजाच्या  मते ,  त्यामुळे  मुस्लिम  मतांचे  होणारे  विभाजन  या  कारणांमुळे  सुवर्णमध्य  साधण्यासाठी  ममतादीदींनी  आता  हिंदू,  मुस्लिम  मतांचा  समतोल  राखण्यासाठी  ही  नवी  खेळी खेळली  असल्याची  चर्चा  बंगालमध्ये  सुरू  आहे.  यावर  आता  हिंदू , मुस्लिमच  का  ख्रिश्चन  व  इतर  धर्मांना  ही  सहायता  का  नाही  यासाठी  काही  लोकांकडून  बंगाल  मध्ये  सहाय्यता  निधीची  मागणी  केली  गेली  आहे.
 
 

परंतु  यातून  एक  मोठा  सरळ,  साधा  ,सोपा  प्रश्न  उभा  राहतो  आपण  सरकार  यासाठी  निवडून  देतो  का ?  लांगुलचालन व  धर्मावर  आधारित  अर्थसहाय्यता  हा  सरकारचा  अजेंडा  कसा  असू  शकतो.  संविधानात  कुठल्या  तरतूदीत  धर्म  निष्ठित  आर्थिक  मदत  करावी  व  लांगुलचालन  करावे  असे  लिहिले  आहे  हे  ममता  दीदींनी  सांगावे.  कधी नमाज,  कधी  दुर्गापूजेला   उपस्थित  राहायचे  व  निवडणूक  नसताना  बंगाल  मध्ये  होणाऱ्या  हिंसेवर  मौन  पाळायचे  हे  म्हणजे  पद्धतशीर  समाजाशी  केलेला  द्रोह  आहे.
 
 
 
अर्थव्यवस्थेतही  ही  असली  धर्मनिरपेक्षता  निधीच्या  आकड्यांचे  गणित  कोलमडून  ठेवते‌.  २०१२  ला  इमामांना  Stipend  (एक  प्रकारचा  पगार )  घोषित  केला.  बंगालमध्ये  त्या  घडीला  ढोबळमानाने  ३००००  हून  अधिक  इमाम  होते.  २०२०  विधानसभा  निवडणुकीपूर्वी  दीदींनी  ८०००  पुरोहितांना  स्टायपेंड  दिले.  अल्पसंख्याक  समाजातील  लोकांना  व्यवसायासाठी ५  लाखांपर्यंत  कर्ज  इथपर्यंत  ठीक  होते  त्यापुढेही  दीदींनी ७००  मदरशांना  अधिकृत  दर्जा  देण्याचे  ठरवले.  हे  लांगुलचालन  नाही  मग  काय  आहे  हे  ज्याने  त्याने  विचार  करण्यासारखे  आहे.
 
 


दीदींनी  आता  दुर्गापूजा  कमिटींना  भेट  देत  या  संस्थांना  देणगी  देण्याचे  ठरवले  आहे.  सरकारचे  सुमारे  २८०  कोटींहून अधिक  रूपये  यासाठी  खर्च  होणार  आहे.  बंगालमध्ये  वाढती  बेरोजगारी,  आरोग्याचे  प्रश्न,  शांतता  सुव्यवस्थेतील  बिघाड,   वातावरण   बदल ,  पर्यावरणाचा   प्रश्न,  बांगलादेशी  अतिक्रमणामुळे  व्यवस्थेत  पडणारा  ताण,  भ्रष्टाचार  या  समस्या  सोडून  मुल्ला,  मौलवी,  पुरोहित  यांना  खुष  करण्यासाठी  पश्चिम  बंगाल  सरकार  सध्या  काम  करत  आहे.  भारतीय  जनता  पार्टीचे  सदस्य  व  माजी  आर्थिक  सल्लागार  भारत  सरकार  यांनी  २०२१-२२  मध्ये  सरकारवर  ६०८६४  कोटींचा  बोजा  असल्याचे   विधान  केले  होते.  २०१९-२०  मध्ये  फिस्कल  डेफिसिट  ३६८३१  कोटींवरून  एका  वर्षात  ५२३५०  कोटी  आणि  २०२१-२२   मध्ये  ६०८५४  कोटी  रूपये  झाले  असे  लहिरी  यांनी  प्रसारमाध्यमांना  सांगितले  होते.
 
 
 


Capital Outlay ,  मूलभूत  सुविधांवर  अपेक्षे  इतपत  देखील  खर्च  राज्य  सरकारने  केला  नाही.  इन्फ्रास्ट्रक्चर  प्रोजेक्ट,   विकासकामे  यांवर  खर्च  न  होता  पैसा  हा  केवळ  भ्रष्टाचार  आणि  लांगुलचालनासाठी  विनियोग  केला  असा  त्याचा  अर्थ   काढल्यास  वावग  ठरणार  नाही.  उलटपक्षी  केंद्रात  विरोधी  विचारांचे  सरकार  आहे  म्हणून  कल्याणकारी  योजना  बंगालमध्ये  रोखल्या  गेल्या.  NFHS  चा  सर्व्हनुसार  ६५.२  टक्के  जनतेकडे  शेतीसाठी  स्वतः ची  जमीन  नाही.  बंगालमध्ये  शेतकऱ्यांचे  दरडोई  उत्पन्न  घटते  आहे.  शेतीबरोबरच  Manufacturing  सेक्टर  मध्ये  मनुष्यबळ  कमी  केले  जात  आहे.  फक्त  कन्स्ट्रक्शन  सेक्टर  मध्ये  थोडी  तेजी  पाहायला  गेल्या  आर्थिक  वर्षात  पहायला  मिळाली.  त्यातही  रोजच्या  मजूरीवर  अनेक  कामगार  अवलंबून  असल्याने  ' डाव्या '  चे  सरकार  गेल्याने  हितसंबंध  दुखावले  गेले.  कामगारांची  कटोती  सुरू  झाली.
 
 
 

दुसरीकडे  मात्र   दीदींच्या   पक्षात   महत्वाचा   स्थानावर   पैशाचे   बळ   असलेल्या   धनिकांनाच   स्थान   मिळाले.  Crime -  Corruption  या  अभद्र  युतीने  एकेकाळचा  समृद्ध  बंगाल  होरपळून  जात  आहे.  तृणमूल  काँग्रेस  व  बहुसंख्य  राजकीय  पक्ष  लोकांच्या  आर्थिक  सक्षमीकरणासाठी  काम  करत  नसून  आपले  दुकान  चालवण्यासाठी  काम  करत  आहेत  का ?  हा  प्रश्न  बंगालच्या  जनतेला  हा  प्रश्न  एकदा  विचारला  पाहिजे.
 
 


एकीकडे  धर्मनिरपेक्ष  म्हणायच  दुसरीकडे  लांगुलचालन  करायचे  हे  दुटप्पी  धोरण  आहे.  जात  धर्म  पंथ  विरहीत  फक्त  जनसामान्यांना  सक्षम  करून  सुजलाम  सुफलाम  राज्य  बनवणे  ही  सरकारची  जबाबदारी  आहे.  लोकांना  स्वतः चा  पायांवर  उभे  राहता  येईल  असे उद्योग  रोजगार  निर्मिती  करणे  व  त्यासाठी  आवश्यक  असे  मनुष्यबळ  निर्माण  करणे  हे  सरकारचे  काम  आहे.  आर्थिक,  सामाजिक  उत्क्रांती  व  आर्थिक  विकास  याला  महत्व  नेता  जे  सरकारचे  काम  नाही अशा  गोष्टींना  निवडणुकीत  प्राधान्य  दिले  जात  आहे.
 
 


आता  यावर  जनतेने  ठरवायचे  आहे  काय  चूक  काय  बरोबर  अथवा  पहिले  पाढे  पन्नास  हीच  अवगत  देशाच्या  अधोगतीला  पुरेशी  आहे.  आर्थिक  दृष्ट्या  रेवडी  देणे ,  लोकप्रिय  योजनांसाठी  सरकारी  तिजोरी  खाली  करणे,  पैशाचा  अपव्यय  करणे,  विकास  निधीतून  लूटमार  करणे  हेच  कुठेतरी  थांबले  पाहिजे.  सरकार  मोफत  देत  हेच  कुठेतरी  बदलले  पाहिजे.  नाहीतर  दिवाळखोरी  बरोबरच  आयतखोर  समाज  बनवण्यापासून  रोखणे  हे  ब्रह्मदेवालाही  शक्य  होणार  नाही.